समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Monday, June 29, 2015

नालंदा में हिंसक संघर्ष के व्यापक संदेश शिखर पुरुष समझें-हिन्दी चिंत्तन लेख(nalanda mien sangharsh ka vyapak sandesh shikhar purush samjhen-hindi thought aritcle)

                              नालंदा में एक विद्यालय के छात्रावास से लापता दो छात्रों के शव एक तालाब में मिलने के बाद उग्र भीड़ ने निदेशक को पीट पीट कर मार डाला। बाद में छात्रों की मृत्यु पाश्च जांच क्रिया से पता चला कि बच्चों की मौत पानी में डूबने से हो गयी थी। जबकि मृत छात्रों की मृत्यु से गुस्साये लोग यह संदेह कर रहे थे कि छात्रावास के अधिकारियों ने उनकी हत्या करवा कर तालाब में फैंका या फिंकवाया होगा। हमें दोनों पक्षों के मृतक के परिवारों से हमदर्दी है पर इस घटना पर जिस तरह प्रचार माध्यम सतही विश्लेषण कर रहे हैं उससे लगता नहीं कि कोई गहरे चिंत्तन से निष्कर्ष निकल रहा हो।
                              यह घटना समाज में आम जनमानस में राज्य के प्रति कमजोर होते सद्भाव का परिणाम है। इस सद्भाव के कम होने के कारणों का विश्लेषण करना ही होगा।  मनुष्य समाज में राज्य व्यवस्था का बना रहने अनिवार्य माना गया ताकि कमजोर पर शक्तिशाली, निर्धन पर धनिक और प्रभावशाली लोग अपने से कमतर पर अनाचार न कर सकें।  हम प्रचार माध्यमों पर आ रहे समाचारों और विश्लेषणों को देखें तो यह संदेश निरंतर आता रहा है कि प्राकृत्तिक रूप से इस सिद्धांत पर समाज चल रहा है जिसमें हर तालाब में बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। मनुष्य में राज्य व्यवस्था का निर्माण इसी सिद्धांत के प्रतिकूल किया गया है।
                              अनेक प्रकार ऐसी घटनायें भी हुईं है कि जिसमें किसी जगह वाहन से टकराकर पदचालकों की मृत्यु हो जाने पर भीड़ आक्रोश में आकर वाहन जला देता है। कहीं वाहन चालक को भी मार देती।  इस तरह की खबरें तो रोज आती हैं। इन्हें सहज मान लेना ठीक नहीं है। आखिर हम जिस सामाजिक व्यवस्था में सांस ले रहे हैं कहीं न कहीं उसका आधार राज्य प्रबंध ही है।  भीड़तंत्र का समर्थन करना अपनी जड़ें खोदना है पर सवाल यह है कि आक्रोश में आकर लोग इसे भूल क्यों जाते हैं? क्या उनमें इस विश्वास की कमी हो गयी है कि गुनाहगार को सजा मिलना सरल नहीं है इसलिये वह समूह में यह काम कर डालें जिसकी अपेक्षा बाद में नहीं की जा सकती।
              दूसरी बात हमें देश के आर्थिक, सामाजिक तथा प्रतिष्ठत शिखर पुरुषों से भी कहना है कि उन्हें अब चिंता करना ही चाहिये। आमजन को केवल दोहन के लिये समझना उनकी भूल होगी।  उन्हें शिखर समाज में आर्थिक, सामाजिक तथा सद्भाव का वातावरण बनाये के लिये मिलते हैं।  अगर कहीं तनाव बढ़ा है तो उन्हें भी आत्ममंथन करना ही होगा।  समाज में विश्वास का संकट सभी वर्गों के लिये तनाव का कारण बनता है।
-----------------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें