वह पत्रकार हैं, वह वकील हैं, वह स्वयंभू समाज सेवक हैं। टीवी पर चर्चा में उनके चेहरों में ऐसी उदासी कि
जैसे उनको फांसी होने वाली है। मुंबई के धारावाहिक बम धमाकों के एक अपराधी को
फांसी पर अर्द्धबुद्धिमानों के बीच एकदम बेतुकी बहस में इतने बेहूदे तर्क कि मुकदमे के दौरान उसने बचाव में नहीं कहे
होंगे। वह पकड़ा नहीं गया (एक मृतक अधिकारी के अप्रमाणिक लेख से लिया गया तर्क), उसने जांच मे सहयोग
दिया (प्रशासनिक अधिक इसे नहीं मानते) और सरकार अभी तक उसके असली अपराधी सगे भाई
को नहीं पकड़ पायी जैसी वह बातें कह रहे हैं।
अपराधियों को फांसी होती है पर जिस तरह इस प्रकरण में इन पेशेवर
अर्द्धबुद्धिमानों के चेहरे फक हो रहे हैं और वाणी सूख रही है तब हमारे मन में
प्रश्न आ रहा है क्या कोई ऐसी एतिहासिक घटना होनी वाली है जो अभी तक देश में
प्रवाहित मानसिक विक्षिप्तीकरण करने वाली विचाराधारा बंद होनी वाली है या उसके
संवाहकों लगता है कि उनके सहारे खत्म होने वाले हैं।
बुद्धिमानों की मुस्कराहट तो स्वाभाविक है पर क्या वह इस प्रश्न का उत्तर
ढूंढ पायेंगे। हालांकि भविष्य में इसका
उत्तर मिल जायेगा। मामला मुंबई का है इसलिये हम कुछ ज्यादा सोच रहे हैं। मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है और वहां धवल
छवि तथ काली नीयत वाले धनपति एक साथ विराजते हैं।
काले धंधे वालों के कू्रर सरदार पाकिस्तान में रहते हैं। एक समय था जब मुंबई में दुष्ट दबंग का साथ होना
गर्व का विषय समझा जाता था। आज कम हुआ है पर लगता है कि इस फांसी से दबंगों की नाक
दबने वाली है और उनके सहारे जीने वाले अब भयग्रस्त हैं। कोई बौखलायेगा पर कौन? कोई टूटेगा? कुछ बनेगा, कुछ बिखरेगा पर क्या? या कुछ भी नहीं
होगा। अनेक प्रश्न भविष्य के गर्भ में
होते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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